शुरुआत
एक ही पल में, सालों पहले ऐसा हुआ,
मैं जो अबोध था, सो सुबोध हुआ:
यकायक, ज़िंदगी का चक्का चलना शुरू हुआ!
सामने की दुनिया दिखाई दी— कुछ ऐसे
हलवाहा हो तैयार खड़ा, अपने बैलों संग जैसे
जिसने राह के पहले रोड़े पर पसीना बहाया,
सोना उगलती ज़मीन को जो तज आया,
भौंएँ ताने नीचे घाटी में झाँके,
जोतने के लिए पहाड़ी की ढलान को भाँपे,
फ़सल के लिए पथरीली ज़मीन को आँके,
आसमान में बिजली सर्प सी लहराए,
बादलों के काले टीले, खड़े, सीना फैलाए, मुँह बाए,
अब इंतज़ार में पलकें बिछाए।
—गर हौसला है तो, उनके सीने पर हल चलाए!